ट्रांजिस्टर (Transistor) क्या है और कैसे काम करता है

आज के समय में जितने भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल किया जा रहा है उन सभी के लिए ट्रांजिस्टर जरुरी भागो में से एक है। इसका आविष्कार सन् 1947 में तीन अमेरिकन भौतिकविदो द्वारा किया गया जिनका नाम John Bardeen, Walter Brattain, and William Shockley था।

इस पोस्ट में हम ट्रांजिस्टर के बारे में विस्तार में जानेंगे कि ट्रांजिस्टर क्या होता हैं, कैसे काम करता है, इसका कहा इस्तेमाल होता है, प्रकार, लाभ-हानि, आदि।

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ट्रांजिस्टर एक अर्धचालक उपकरण (semi conductor device) हैं जिसका प्रयोग विद्युत प्रवाह (electric current) या वोल्टेज के संचालन अथवा इंसुलेट(insulate) दोनों के रुप मे किया जा सकता है।

अगर इन्हें इलेक्ट्रॉनिक सर्किट से हटा दिया जाए तो यह सर्किट ज्यादा दिनों तक ठीक से काम नहीं कर पाएगी। विद्युत प्रवाह में जरा सी भी कमी या बढ़ोतरी से संभवत सर्किट जल जाएगी।

ट्रांजिस्टर (Transistor) क्या है और कैसे काम करता है?

ट्रांजिस्टर (Transistor) क्या है ?

ट्रांजिस्टर एक ऐसा यंत्र है जो इलेक्ट्रीकल सिग्नल्स के फ्लो को नियंत्रण करने का काम करता है। सरल भाषा में बोला जाए तो यह है एक switch और amplifier की तरह काम करता है। इस semiconductor यंत्र को बनाने के लिए ज्यादातर सिलिकॉन और जर्मेनियम जैसे पदार्थों का प्रयोग किया जाता हैं।

यह आकार में बहुत ही छोटा और साधारण सा दिखता हैं यह बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है।

इससे हम electric current या voltage दोनो को संचलित या insulate कर सकते है।

Transistor में दो N-type semiconductor होता है जिसे p-type semiconductors से अलग किया जाता हैं इसलिए इसे NPN transistor भी कहते है।

पहले वेक्यूम ट्यूब का इस्तेमाल होता था लेकिन ट्रांजिस्टर के आविष्कार के बाद सिर्फ यही इस्तेमाल होता है। मोटे आकार और हल्के वजन होने के कारण बहुत ही कम पावर की आवश्यकता होती है। इसका प्रयोग लगभग सारे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में किया जाता है जैसे स्विच सर्किट, एंपलीफायर, ऑसिलेटरल, आदि।

ट्रांजिस्टर के भाग – Parts Of Transistor

सामान्यतः ट्रांजिस्टर तीन या अधिक semiconductor material से बना होती है। किसी भी Transistor में यह तीन टर्मिनल होते हैं:

(i) Base: इसका इस्तेमाल ट्रांजिस्टर को सक्रिय करने के लिए किया जाता है।

(ii) Collector: यह ट्रांजिस्टर का positive lead होता हैं।

(iii) Emitter: ट्रांजिस्टर के negative lead को emitter कहते है।

इन टर्मिनल का इस्तेमाल किसी दूसरे सर्किट से जोड़ने के लिए किया जाता है। कोई भी ट्रांजिस्टर बहुत सी basic principle पर काम करता हैं यानी दूसरे चैनल बहुत ही कम मात्रा में आने वाले करंट प्रवाह को नियंत्रण करता है और अलग भी करता है।

ट्रांजिस्टर के विन्यास : Configuration Of Transistor

ट्रांजिस्टर को अलग अलग configuration में सर्किट से जोड़ा जा सकता है। मुख्यत: रुप से तीन प्रकार के विन्यास होते हैं। सर्किट की आवश्यकता के हिसाब से विभिन्न ट्रांजिस्टर विन्यास (Configuration) का प्रयोग किया जाता है।

(i) Common emitter (CE) type configuration

(ii) Common base (CB) type configuration

(iii)Common collector (CC) type configuration

CE transistor का इस्तेमाल कमजोर सिग्नल्स को amplify करने के लिए किया जाता है यानी यह उच्च वोल्टेज और उच्च करंट (high voltage and high current gains)प्रदान करता है। यह सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। CB और CE transistor का प्रयोग बहुत ही कम होता है।

ट्रांजिस्टर के प्रकार: Types Of Transistor

बाजार में बहुत प्रकार के ट्रांजिस्टर होते हैं जैसे:

  • Insulated-Gate Bipolar Transistor
  • Organic Field-Effect Transistor (OFET)
  • Tunnel Field-Effect Transistor
  • Diffusion Transistor 
  • Film Transistor
  • Fast-Reverse Epitaxial Diode Field-Effect Transistor (FREDFET)
  • Inverted-T Field-Effect Transistor (ITFET)
  • Schottky Transistor
  • MOSFET
  • JFE

इन सभी में से सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला ट्रांजिस्टर Bipolar Junction Transistor (BJT) और Field Effect Transistor (FET) है इसलिए हम इन दोनों के बारे में विस्तार से जानेंगे। इसके अलावा आगे कुछ अन्य ट्रांजिस्टर के बारे में भी जानेंगे।

1)Bipolar Junction Transistor (BJT)

इस ट्रांजिस्टर के अंदर 3 टर्मिनल होते हैं जिसे हम base, emitter, और collector के नाम से जानते हैं।

Collector और emitter के बीच बहुत ज्यादा मात्रा में करंट फ्लो होता है जिसको नियंत्रित करने के लिए base और emitter के बीच बहुत ही कम मात्रा में करंट पास होता है।

इस transistor को ज्यादा दो प्रकार में बांटा गया है: (i) N-P-N (ii) P-N-P

N-P-N ट्रांजिस्टर क्या होता हैं?

जब एक P-type प्रदार्थ दो N-Type प्रदार्थ के बीच होता है तो वह N-P-N Transistor कहलाता हैं। इन ट्रांसिस्टरका सबसे ज्यादा इस्तेमाल सर्किट के रूप में किया जाता है। इसका काम कमजोर सिग्नल सको amplify करके मजबूत बनाने का होता है। इसमें electrons emitter से collector की ओर जाते हैं जिसके कारण ट्रांजिस्टर में करंट बनने लगता है।

P-N-P ट्रांजिस्टर क्या होता हैं?

जब एक N-type प्रदार्थ दो P-Type प्रदार्थ के बीच होता है तो वह P-N-P Transistor कहलाता हैं। किसी भी डिवाइस में करंट फ्लो को नियंत्रण करने का काम यह configuration करता हैं।

इस bipolar transistor में एक ही series में दो crystal diodes जुड़े होते है। दाई ओर मे लगा डायोड collector-base-diode कहलाता हैं जबकि बाई ओर लगा डायोड emitter-base-diode कहलाता हैं।

2)Field Transistor Diode

इस transistor में भी तीन टर्मिनल्स होते हैं जिसे हम Gate, Source, और Drain कहते हैं। यह एक unipolar(एकध्रुवीय) transistor है। Source और Drain के बीच करंट के प्रभाव को नियंत्रण करने के लिए Gate टर्मिनल पर voltage होता है। ऐसे तरह के ट्रांसिस्टर का सबसे ज्यादा इस्तेमाल low noise amplifier, analogue switches, और buffer amplifier मे किया जाता है क्योंकि इसमें N channel FET या P channel FET का प्रयोग चालन (conduction) के लिए होता है।

3)Small Switch Transistor

इस transistor का मुख्य काम किसी भी सिग्नल को स्विच करके amplify करना है। Biplor Junction Transistor की तरह यह भी P-N-P और N-P-N के रुप में मिलता है।

4)Small Signal Transistor

यह ट्रांसिस्टर भी P-N-P और N-P-N के रुप में बाजारों में पाया जाता है। जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि यह ट्रांजिस्टर current और voltage को amplify करने के साथ ही switching के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। इसका प्रयोग लगभग सभी इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों में किया जाता है जैसे कि Timer Circuit, LED diode driver, Infrared Diode amplifier, आदि।

5)Power Transistor

Power transistor का काम हाई पावर को सप्लाई और amplify करना होता हैं। इसमें operating frequency की range 1 से 1000 MHz तक की होती है और collector के करेंट की value range 1 से 100A के बीच होती हैं। यह ट्रांसिस्टर P-N-P और N-P-N के साथ साथ Darlington के रूप में भी पाया जाता हैं।

ट्रांजिस्टर कैसे काम करता हैं: Working Of Transistor

अभी हमने ऊपर जाना कि bipolar junction transistor मे तीन टर्मिनल्स होते हैं- Emitter, Base और collector। इसमें current को पास करने के बाद जो कम मात्रा वाला करंट फ्लो है उसे emitter और base से नियंत्रित किया जाता है। वहीं दूसरी और ज्यादा मात्रा वाले करण को emitter और collector के जरिए नियंत्रण किया जाता हैं।

बाइपोलर जंक्शन ट्रांसिस्टर के संचालन में base emitter junction forward Bias hota हैं जबकि base collector Junction reverse biased होता हैं। यानि कि जब base emitter junction से करंट की एक धारा प्रवाहित होगी तो collector circuit से भी करंट की एक धारा प्रवाहित होगी।

हमने bipolar junction transistor में जाना कि वह दो प्रकार के होते है : NPN और PNP। तो अब हम NPN के उदाहरण से यह समझते हैं कि ट्रांजिस्टर काम कैसे करता है।

NPN डिवाइस का निर्माण emitter N-type प्रदार्थ से होता है जिसमें ज्यादातर वाहक electrons होते है।जब यह base emitter junction forward biased होता हैं तब उसमे electrons N-type क्षेत्र से P-Type की तरफ जाते हैं वहीं दूसरी ओर जब कम मात्रा में वाहक होंगे तो वह N-Type क्षेत्र की तरफ जाएंगे।

उसके बाद जब वह एक दूसरे से मिलते हैं तो करंट पूरे जंक्शन में प्रवाहित होने लायक हो जाता है। वहीं दूसरी ओर junction reverse biased होता हैं तो holes और electrons junctions से दूर होने के कारण दोनों क्षेत्रों में रिकत्ता (depletion) होने लगता है। ऐसी स्थिति में जंक्शन से कोई भी करंट फ्लो नहीं होता हैं।

जब करंट का प्रवाह base और emitter के बीच होता हैं तब electrons emitter से base की तरफ़ फ्लो होने लगते हैं। उसके बाद यह electron एक दूसरे से depletion वाले क्षेत्र में मिलते हैं जहां कोई भी इलेक्ट्रॉन मौजूद नहीं होता है।

ज्यादातर electrons इस क्षेत्र में पूरी आजादी के साथ घूम सकते हैं बिना recombine हुए क्योंकि क्षेत्र में doping level बहुत कम होता है और साथ ही base भी काफी पतला होता है।

ऐसी स्थिति में वे सब electrons collector की तरफ चले जाएंगे। और इसी प्रकार से पूरे reversed biased junction और collector circuit में पूरी तरह से करंट फ्लो होने में सक्षम होता है।

आगे पढ़िए : कैपेसिटर (Capacitor) क्या हैं और कैसे काम करता हैं?

ट्रांजिस्टर के प्रयोग: Uses Of Transistor

ट्रांजिस्टर ज्यादातर इनवर्टर के सर्किट में फास्ट स्विच की तरह काम करते हैं।

इसका प्रयोग एम्प्लीफायर में कमजोर सिग्नल को amplify करने के लिए किया जाता है।

डिजिटल गेट के बनाने के लिए भी ट्रांजिस्टर बहुत उपयोगी होते हैं।

विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक सर्किट को बनाने में भी ट्रांजिस्टर का इस्तेमाल होता है।

ट्रांजिस्टर के लाभ : Pros Of Transistor

ट्रांजिस्टर का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसकी कीमत बहुत ही कम होती है और साथ में यह आकार में बहुत छोटा होता है।

छोटा होने के कारण इसमें बहुत ही कम voltage का इस्तेमाल होता है और साथ ही साथ power की बचत होती हैं।

ट्रांजिस्टर का lifeline बहुत लंबा होने के कारण या जल्दी खराब नहीं होता।

यह बहुत ही तेजी के साथ Switch हो सकते हैं।

इसका इस्तेमाल करके single integerated सर्किट को आसानी से बनाया जा सकता है और साथ ही circuit की क्षमता को इसकी मदद से बेहतर कर सकते हैं।

ट्रांजिस्टर के हानि : Cons Of Transistor

जिस प्रकार हर सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार ट्रांजिस्टर के फायदे तो बहुत है लेकिन कुछ सीमाएं भी हैं जिनके बारे में यदि आपको ना पता हो तो यह नुकसान भी कर सकता है। तो आइए जानते हैं किन वजह से आपको transistor को protect करने की जरूरत है:

ट्रांजिस्टर बड़ी ही सहजता से रेडिएशन और कॉस्मिक किरणों से प्रभावित हो सकते हैं।

इसकी वजह से उच्च गतिशीलता वाले electrons की कमी होती है।

यह बड़ी ही आसानी से किसी भी electrical और thermal घटना के कारण खराब हो सकता है।

आगे पढ़े: रेजिस्टेंस (Resistance) क्या हैं और कैसे काम करता हैं ?

डायोड (Diode) क्या हैं और कैसे काम करता हैं?

निष्कर्ष

ऊपर लिखे गए पोस्ट में हमने ट्रांजिस्टर के भाग, विन्यास, प्रकार, कार्य, लाभ अथवा हानि के बारे में विस्तार से जाना। इसके बाद भी आपको अगर ट्रांजिस्टर से जुड़ी कोई भी प्रशन हो तो आप नीचे कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं।

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Transistor Kya Hota Hai in Hindi FAQ

1)ट्रांजिस्टर किसका बना होता है?

ट्रांजिस्टर को बनाने के लिए ज्यादातर सिलिकॉन और जर्मेनियम जैसे पदार्थों का प्रयोग किया जाता हैं।

2)PNP और NPN ट्रांजिस्टर के बीच क्या अंतर है?

जब एक P-type प्रदार्थ दो N-Type प्रदार्थ के बीच होता है तो वह N-P-N Transistor कहलाता हैं।
जब एक N-type प्रदार्थ दो P-Type प्रदार्थ के बीच होता है तो वह P-N-P Transistor कहलाता हैं।

3)ट्रांजिस्टर में संधियों की संख्या कितनी होती है?

दो संधियाँ होती है : PNP, NPN ( उत्सर्जक-आधार संधि’ , ‘आधार-संग्राहक’ संधि)

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